सुनूंगा सबकी करूंगा अपनी समझ की

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Tuesday 27 April 2021
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सुनूंगा सबकी करूंगा अपनी समझ की

गर्मियों का मौसम आ चुका था स्कूलों की छुट्टियां होने लगी थी इसी बीच मैं भी अपने घर आया था वैसे तो मैं अपनी पढ़ाई इन दिनों मैं बुआ जी के यहां किया करता था। परंतु गर्मियों में मैं अपने घर घूमने आया करता था। गर्मियों में हम आम ताकने के लिए बगीचों में जाया करते थे और मनोरंजन के लिए कुछ किताबें, चुटकुले, किस्से - कहानियां आदि अपने साथ आम के बगीचे में लेकर जाया करते थे। इन्हीं किस्से कहानियों में से मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी सीख जो  मुझे एक कहानी से मिली है जिसका नाम हैं - " सुनूंगा सबकी करूंगा अपनी समझ की। " 


तो आइए कहानियों की इस रहस्यमई सफर में आपको ले चलते हैं।


व्याघ्रपथ गांव में रामकृपा नाम से एक व्यापारी रहते थे।

उसके बेटे का नाम हरी राम था। रामकृपा ने हरी राम को पहली बार गल्ला मंडी भेजा। पिता ने बेटे को चलते समय समझाया मेरी कुछ बातों का गांठ बांध लो क्योंकि पहली बार बाजार जा रहे हो यह बातें तुम्हें रास्ते में काम आएंगी 


पहली बात --- व्यापार में दो पैसे का लाभ भी बहुत होता है

                    इसलिए मोल भाव करके ही अनाज खरीदना।


दूसरी बात --- समझदार आदमी की बात सुनना परंतु करना                       अपनी समझ की। और शाम होते ही घर आ                         जाना।


बेटा पिताजी से आज्ञा लेकर दो खाली बोरे लिए, घर से एक घोड़े के ऊपर बैठकर अनाज की मंडी को चल दिया। अनाज की मंडी किसी दूसरे गांव में थी जो कि व्यध्रपथ से बहुत दूर पड़ता था इसलिए हरी राम ने घोड़े के ऊपर बैठकर ही जाना उचित समझा। कुछ घंटों में हरी राम अनाज की मंडी में पहुंच गया वहां पर अनाज की कई बड़ी बड़ी दुकानें देखी। और जाकर के कुछ दुकानों में मोल-भाव करने लगा उसे एक बड़ी दुकान में सौदा पट गया और वह एक बोरी गेहूं तौलवा लिया। फिर बाजार की सैर करने लगा धीरे धीरे दोपहर हो चुकी थी। उसे पिताजी की बात याद आई कि शाम को घर जल्दी लौटना है, इसीलिए वह गेहूं के बोरे को घोड़े के पीठ पर लादकर घर की ओर चल दिया, बोरा लदा होने के कारण घोड़े के पीठ पर बैठने के लिए कोई जगह नहीं थी इसलिए वह खुद पैदल चलने लगा।


                               तभी रास्ते में कुछ लाल बुझक्कड़ सिर पर लाल पगड़ी बांधे एक वृक्ष के नीचे अपने चेला चपाटियों के साथ अपनी धुनी रमाए बैठे थे। हरी राम को देखकर लाल बुझक्कड़ हंसने लगे, यह देखकर हरी राम को गुस्सा आ गया।


हरी राम --- तुम लोग मुझे देखकर क्यों हंस रहे हो ? क्या मैं मूर्ख दिखता हूं ? (ऐसा कहकर हरी राम उनसे लड़ने लगा)

तभी उनमें से कोई बोला --- ठहरो....... ठहरो...... मै तुम्हे समझता हूं। दरअसल बात यह है कि जब तुम्हारे पास घोड़ा है तो पैदल चलना मूर्खता की बात हुई ना ?

हरी राम --- अजीब बात करते हो दिखता नहीं घोड़े की पीठ पर गेहूं लगा है फिर मैं कैसे और कहां बैठूं ?

फिर उनमें से कोई बोला --- समस्या गंभीर है परंतु इसका जवाब भी हमारे उस्ताद लाल बुझक्कड़ देंगे वह उन्हें अपने मुखिया लाल बुझक्कड़ से मिलवा कर समस्या बताता है।

लाल बुझक्कड़ पहले तो सुनकर गंभीर हो गए फिर मुस्कुराते हुए बोले इतनी छोटी सी बात अभी समस्या हल किए देता हूं।


लाल बुझक्कड़ --- बोरे में क्या है?

हरी राम --- गेहूं।

लाल बुझक्कड़ --- तो जितना वजन गेहूं का है उतने ही वजन का पत्थर अपने दूसरे बोरे में भरो और दोनों को गांठ मारकर घोड़े के पीठ पर दोनों तरफ इधर-उधर करके लटका दो, इससे वजन बराबर हो जाएगा और तुम घोड़े की पीठ पर बैठकर अपने घर आराम से खुशी-खुशी जा सकते हो।

यह हुई ना अक्लमंदो वाली बात की बात --- सभी चेला एक स्वर में बोले।


                              हरी राम ने सोचा यह समझदार आदमी दिखता है इसकी बात माननी चाहिए। यह सोच कर हरिराम ने एक बोरे में पत्थर भरे और उसे घोड़े की एक तरफ लटका दिया और गेहूं वाले बोर को घोड़े के दूसरी तरफ लटका दिया।

उसके मन में यह विचार आया की पैदल चलना तो मूर्खता है और शाम तक घर भी पहुंचना है इसलिए वह घोड़े की पीठ पर बैठकर घर की ओर चल दिया।

उसके बैठते ही घोड़ा कुछ दूर चल कर गिर गया यह देखकर आसपास के लोग मदद के लिए दौड़ पड़े। हरी राम के हाथ पैर छिल गए थे बड़ी मुश्किल से लोगों ने घोड़े और हरी राम को उठाया ।

बोरे में पत्थर देख लोग हरी राम को डांटने लगे --- अजीब मूर्ख हो इतना वजन घोड़े पर लादकर चलते हो, बेचारे जानवर पर जरा भी दया नहीं आई ? 



आप लोग भी मुझे मूर्ख समझते हैं ? ( हरी राम परेशान होकर बोला )


हां तुम मूर्ख हो नहीं तो बोरे में पत्थर भरकर घोड़े पर क्यों लादते। (भीड़ बोली)

हरी राम ---  गेहूं का वजन बराबर करने के लिए मैंने एक बोरे में पत्थर भरकर घोड़े के पीठ पर लादा था जिससे मुझे बैठने के लिए जगह मिल जाए मुझे यह ज्ञान लाल पगड़ी वाले एक बुजुर्ग बाबा ने सिखाया , जैसा उन्होंने कहा मैंने वैसा ही किया।

भीड़ ने कहा --- तो तुम्हें मूर्ख लाल बुझक्कड़ मिला था जो खुद मूर्ख है ही, और तुम भी मूर्ख बन गए।

हरी राम --- मैंने सोचा सयाने और ज्ञानी दिखते हैं तो मैंने उनकी बात मान ली, मुझे तो समझ में ही नहीं आया कि वह मुझे मूर्ख बना रहे हैं।


                          तब लोगों ने हरी राम को समझाया, पत्थर लादने के बजाय गेहूं को दो हिस्सों में बोरे में भरकर इधर-उधर लटका देते और खुद बीच में बैठकर घर चले जाते तो बेचारे जानवर पर भार भी नहीं बढ़ता और तुम आसानी से घर भी पहुंच जाते। तुमने लाल बुझक्कड़ की बात तो सुन ली पर अपनी समझ नहीं लगाई, इसीलिए तुम मूर्खों की तरह यहां गिरे पड़े हो।

हरीराम को लगा कि सचमुच मूर्ख बन गया हूं, वह तुरंत पत्थर फेंका और गेहूं को दोनों बोरो में आधा आधा करके घोड़े की पीठ पर लाद दिया। और वह जैसे ही घोड़े के पीठ पर बैठा वैसे ही घोड़ा सरपट दौड़ कर शाम होने से पहले घर पहुंच गया। घर पहुंच कर हरी राम ने सारा किस्सा अपने पिताजी को सुनाया।


                            राम कृपा को सारी बात समझ में आ गई और उसने तुरंत ही अपने बेटे को समझाते हुए कहा मैंने पहले ही दो बातें बताई थी की व्यापार में दो पैसों का लाभ भी बहुत होता है तुम्हें पहली बात तो समझ में आ गई इसीलिए तुम मोलभाव करके गेहूं लाए परंतु मेरी दूसरी बात भूल गए थे मैंने दूसरी बात पहले ही बताया था की समझदार आदमी की बात सुनना परंतु करना अपनी समझ की, अगर तुम मेरी बातों का ध्यान रखते तो तुम इस मुसीबत में कभी ना पड़ते।


हरी राम को बात समझ में आ गई और वह तुरंत बोला अब से मै सुनूंगा सबकी पर करूंगा अपनी समझ की ।




कहानी तो खत्म हो गई परंतु यह कहानी

हमें बहुत बड़ी सी देकर गई । दोस्तों कई बार हमें कुछ समझ नहीं आता कि क्या करना चाहिए क्या नहीं ? ऐसे में हमारे आसपास के लोग हमें मुफ्त का ज्ञान बांटने आ जाते हैं, जिनमें से कुछ हमें राह से भटकाने के लिए ज्ञान देते हैं । तो कुछ हमें सही रहा दिखाने के लिए ज्ञान देते हैं। परंतु दोनों में से कौन हमारा सच्चा मार्गदर्शक है या तभी पता चलेगा जब हम उनकी बातों को सुनकर उन पर तर्क वितर्क करके अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करेंगे तभी सही मार्गदर्शन और सही राह मिलेगी इसीलिए हमेशा याद रखिएगा " सुनूंगा सबकी पर करूंगा अपनी समझ की "। 


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