जादुई पत्थर और आलस्य -
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Wednesday, 11 August 2021
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जादुई पत्थर और आलस्य - आलस्य का परिणाम - प्रेरणादायक हिंदी कहानी
एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत ही आदर-सम्मान किया करता था और गुरु भी अपने शिष्य से बहुत स्नेह करते थे
लेकिन वह शिष्य अपने कार्यों के प्रति बहुत आलसी स्वभाव का था | वह सदैव ही स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश करता रहता था तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था |
अब गुरूजी अपने शिष्य के लिए कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन की कठिनाइयों में पराजित न हो जाये |
उन्होंने मन ही मन में अपने शिष्य के भविष्य के लिए एक योजना बना ली |
एक दिन गुरु जी ने काले पत्थर का एक टुकड़ा अपने शिष्य के हाथ में देते हुए कहा - मैं तुम्हें जादुई पत्थर का यह टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, दूसरे गाँव में जा रहा हूँ | तुम जिस भी लोहे की वस्तु को इस जादुई पत्थर के टुकड़े को स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण (सोना) में बदल जायेगी | पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के बाद मैं इसे तुमसे वापस ले लूँगा |
शिष्य यह सुअवसर पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह सोचते सोचते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी,समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा |
फिर दूसरे दिन जब वह प्रातःकाल उठा , उसे अच्छी तरह से यह स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है | उसने मन में यह निश्चय किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये जादुई काले पत्थर का लाभ अवश्य उठाएगा |
उसने सोचा कि वो बाज़ार से लोहे के बहुत सारे बड़े-बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें स्वर्ण बना देगा.
दिन बीतता गया, पर वह यह सोच कर बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाज़ार जाकर लोहे की वस्तुएं लेता आएगा
अब उसने सोचा कि दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने बाजार जाऊंगा.पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी , और उसने बजाये बज़्ज़ार जाने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा.
पर आलस्य से परिपूर्ण वह नीद की गहराइयों में खो गया, और जब वह उठा तो सूर्यास्त के लिए मात्र कुछ क्षण ही बचा था.
अब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार भागने लगा, पर उसे रास्ते में ही गुरू जी मिल गए, उनको देखते ही वह उनके चरणों में गिर गया और उस जादुई पत्थर के टुकड़े को एक दिन और अपने पास रखने के लिए गुरूजी से याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का धनवान होने का स्वपन चूर-चूर हो गया |
पर इस घटना की वजह से उस शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गयी - अब उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य जीवन के लिए एक अभिशाप है और उसने यह प्रण किया कि अब वह कभी भी काम से नहीं भागेगा और एक सजग एवं सक्रिय व्यक्ति बन कर दिखायेगा.
मित्रों, जीवन में हमें एक से बढ़कर एक सुअवसर मिलते हैं , पर हम बस अपने आलस्य के कारण इसे गवां देते हैं. इसलिए यदि आप सफल, सुखी, भाग्यशाली, धनी और महान बनना चाहते हैं तो आलस्य को त्यागकर, अपने अंदर विवेक, श्रम,और सतत् जागरूकता जैसे गुणों को विकसित कीजिये
आलस्य में मनुष्य को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है | ऐसा व्यक्ति बिना श्रम के ही फल भोग की कामना करता है | वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता है और यदि ले भी लेता है, तो उसे सफल नहीं कर पाता | यहाँ तक कि वह अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग नहीं रहता है और न ही भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठा पता है |
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